Friday, August 29, 2008

बिटिया ना कीजो
जब तुम्हारे कोख में आई थी माँ मैं ,
कोई नहीं जानता था की क्या है ?,
सभी चाहते थे एक बेटा हो,
पर तुम क्या कर सकती थी माँ ,
मुझे जन्म देना पड़ा ......और शुरू हो गई मेरी लाचारी ....
कभी बहन बनकर ,
कभी बेटी बनकर,
सभी मुझे सताते रहे ,
बड़ी हुई तो कर दिया बिदा,रोती रही ,विलखती रही ,
किसीने नही सुनी मेरी एक ..बस कर दिया विवाह ..
आगई बहु बन सशुराल अपनी ,कभी सास तो ,कभी नन्द , तडपाती रही ...दहेज़ के लिए....
करता रहा हरण जिस्म का पति बनकर,
देता रहा ताने ससुर भी,
पल-पल पीती रही विष ,मान सुधा का खुट मैं ,
करती रही खून हाथ अपने ,
अपने ही अरमानो का ,
पर अब किये जो दाता मेरे ,ऐसा ना कीजो ,
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो !!!!!!!!!!